कोटद्वार नगर मे इस साल अत्यधिक वर्षा हुई, रिकार्ड बरसात के चलते बहुत नुकसान भी हुआ। लोगों के घर टूटे सड़कों पुलों को नुकसान हुआ। यद्यपि प्रकृति के आगे बहुधा मानव असहाय ही नजर आता है लेकिन यहाँ आई आपदा के लिए नदी वालों पर अतिक्रमण कर ऱह रहे लोग भी कम जिम्मेदार नही।
कोटद्वार: आपदा के लिए कौन है जिम्मेदार ?
दूसरा अवैध खनन कोटद्वार नगर मे बसने के लिए पहाड़ के लोग इतने लालायित रहे कि पहाड़ से अपने विशाल भवन खेत खलिहान सब छोड़ आये, पहाड़ से पलायन तथा कोटद्वार नगर मे अंधाधुंध बसावट ने भवन निर्माण सामग्री जैसे रेत पथ्थर आदि के दाम इतने बढ़ा दिए कि कभी दो गधों से नदी से रेत उठाने वाला कुछ ही महीने मे ट्रैक्टर ओर यहाँ तक कि डम्परौ के मालिक बन गये।
मालवा नदी, सुधरे तथा खोह नदी का जमकर चीर हरण हुआ। इस अवैध खनन मे खनन कारोबारी और उनको प्रोत्साहन देने वाले नेता और जिन सरकारी विभागों के ऊपर अवैध खनन रोकने की जिम्मेदारी थी उनका राजनैतिक दबाव अथवा नोटों की गड्डियों के रूप मे मिली हड्डियों के आगे मौन समर्थन भी रहा।
यद्यपि कुछ ईमानदार अधिकारी और कर्मचारी भी, हम लेकिन राजनैतिक दबाव और दूसरे कारण वे भी खुद को लाचार महसूस करने लगे, खनन माफियाओं के उत्तराखण्ड के दोनो ऱाजनैतिक दलों से सम्बंध रहे हैं। नदी वालों पर जो कि पानी के प्रवाह को दिशा देते हैं उन पर अमीर गरीब छुटभैया नेता आदि कब्जा जमाये बैठे है, और पानी तो अपना रास्ता खुद तय कर लेता है।
किस की करनी किसको भरनी , जो उसकी जद मे आया उसे मटियामेट कर डाला, अब प्रश्न यह उठता है कि जो बीत गई सो बीत गयी । लेकिन कोटद्वार की आगे की सुरक्षा के लिए अभी से ईमानदार और गंभीर प्रयासों की आवश्यकता होगी। नदी वालों के ऊपर कब्जा जमाये अमीरों को हटाने की जरूरत है गरीब असहाय लोगों को दूसरे सुरक्षित स्थानों पर जगह दे सकते हैं। वैध तथा अवैध खनन पर पूरी तरह रोक ही कोटद्वार नगर को भविष्य में बड़ी तबाही से रोक सकता है नही तो कोटद्वार की सुरक्षा भगवान भरोसे होगी।।।।