सतपुली नगर के प्रसिद्ध कर्मयोगी समाजसेवी ठाकुर सुंदर सिंह चौहान जी का कहना है कि, परहित आर्थात दूसरों की भलाई करने का कार्य सबसे बड़ा धर्म है। गोस्वामी तुलसीदास जी भी कहते हैं परहित सरिस धर्म नहि भाई।
परोपकार से बढकर कोई धर्म नही- ठाकुर सुंदर सिंह चौहान
सतपुली नगर से महज सात किलोमीटर की दूरी पर सुरम्य पर्वत श्रंखलाओं के बीच में स्थापित है। अत्याधुनिक सुविधाओं से लैस ठाकुर सुंदर सिंह चौहान वृद्धाश्रम पाइनस के वृक्षों से आती ठण्डी हवा के झोंक, तथा सामने कलरव करती नारदगंगा का मनमोहक नजारा मन को आह्लादित कर देता है।
तब हमारी मुलाकात होती है संत हिर्दय ठाकुर सुंदर सिंह चौहान जी से जिन्होंने कहा कि आज हमारे गांवो मे बुजुर्ग लोगों की देखभाल करने वाले लोगों का अभाव हो रहा है मै कई गांवो मे गया। मैने निराश्रित बुजुर्गों की दीनहीन दशा देखी तो मेरे मन मे विचार आया कि इन लोगों के लिए अपने पहाड़ मे ही एक घर जैंसे वातावरण मे एक आश्रम स्थापित करूं।
जंहा इन लोगों का शेष जीवन आदर सत्कार मे व्यतीत हो उचित देखभाल मे व्यतीत हो और इसी परम पावन उद्देश्य से ठाकुर सुंदर सिंह चौहान वृद्धाश्रम की स्थापना की गई। समाज सेवी ठाकुर सुंदर सिंह चौहान जी कहते हैं हमारे पहाड़ो में रोजगार की कोई कमी नही है।

पशुपालन ,कृषि,पर्यटन आदि दूसरे क्षेत्रों मे स्वरोजगार के लिए कई रास्ते हैं बस ईमानदार मेहनत की आवश्यक्ता है। ठाकुर सुंदर सिंह चौहान जी ने गरीब विधवा महिलाओं की कन्याओं के विवाह का बीड़ा भी उठाया है वै कहते हैं।
जिन निराश्रित विधवाओं की गरीब कन्यायें हैः वे उनका विधि विधान के साथ विवाह सम्पन्न करायेंगे ठाकुर सुंदर सिंह चौहान आज तक कई गरीब कन्याओं का विवाह करवा चुके हैं।
वे कहते हैं पहाड़ का विकास राजनेता नही मजबूत जीवट वाला पहाड़ी ही कर सकता है वे कहते हैं हम पहाड़ियों के पूर्वजों ने पहाड़ों का सीना काट कर खेत बनाये हैं मेहनत और संघर्ष हमारे खून मे है बस आवश्यक्ता ईनादार प्रयासों की है।।।अजय तिवाड़ी ।।