Thursday, November 30, 2023
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अंतर्राष्ट्रीय महिला दिवस (8मार्च) पर विशेष आलेख- राजीव थपलियाल

अंतराष्ट्रीय महिला दिवस (08 मार्च)                                                              यह तो हम सभी लोग जानते ही हैं कि,हमारी भारतीय संस्कृति में नारी के सम्मान को बहुत महत्व दिया गया है।और कहा भी जाता है कि,जहां नारी की पूजा होती है, वहां देवता निवास करते हैं। किंतु आजकल हमारे समाज  में जो हालात दिखाई देते हैं, उसमें नारी का हर जगह अपमान होता चला जा रहा है। यह बहुत ही चिंताजनक बात है।अपनी संस्कृति की पहचान को बनाए रखते हुए महिलाओं का सम्मान कैसे किया जाए, इस पर विचार करना हम सभी के लिए अत्यंत आवश्यक है।

हम सभी चाहते हैं कि,माता का हमेशा सम्मान हो मां अर्थात माता के रूप में नारी, धरती पर अपने सबसे पवित्रतम रूप में है। माता यानी जननी। मां को ईश्वर से भी बढ़कर माना गया है, क्योंकि ईश्वर की जन्मदात्री भी नारी ही रही है। मां देवकी (कृष्ण) तथा मां पार्वती (गणपति/ कार्तिकेय) के संदर्भ में हमें पता ही है।किंतु समय के बदलाव के हिसाब से आजकल के बच्चों ने अपनी मां को महत्व देना बहुत कम कर दिया है,यह चिंताजनक पहलू है।

सब धन-लिप्सा व अपने स्वार्थ में डूबते जा रहे हैं। जन्म देने वाली माता के रूप में नारी का सम्मान अनिवार्य रूप से होना चाहिए, जो वर्तमान में कम हो गया है, यह सवाल आजकल यक्षप्रश्न की तरह चारों तरफ पैर पसारता जा रहा है। इस बारे में नई पीढ़ी को आत्मावलोकन जरूर करना चाहिए।यह भी एक महत्वपूर्ण बात है कि,आजकल जीवन के हर क्षेत्र में लड़कियां बाजी मार रही हैं आजकल की लड़कियों की यदि हम बात करें तो पाते हैं कि ये लड़कियां आजकल लड़कों से बहुत आगे निकल रही हैं।विभिन्न परीक्षाओं की मेरिट लिस्ट में लड़कियां तेजी से आगे बढ़ रही हैं। एक समय था जब इन्हें कमजोर समझा जाता था, किंतु इन्होंने अपनी मेहनत और मेधा शक्ति के बल पर हर क्षेत्र में प्रवीणता अर्जित कर ली है। इनकी इस प्रतिभा का सम्मान अवश्य किया जाना चाहिए।हम सभी देख रहें हैं कि आजकल पुरुषों का कंधे से कंधा मिलाकर नारियाँ ही चलती हैं।आठ मार्च का दिन समूचे विश्व में महिलाओं के योगदान एवं उपलब्धियों की तरफ लोगों का ध्यान क्रेंदित करने के लिए महिला दिवस के रूप में मनाया जाता है, महिला दिवस मनाने का मुख्य उद्देश्य नारी को समाज में एक सम्मानित स्थान दिलाना और उसके स्वयं में निहित शक्तियों से उसका ही परिचय कराना होता है। अपने व्यक्तित्व को समुन्नत बनाकर राष्ट्रीय समृद्धि के संबंध में नारी कितना बड़ा योगदान दे सकती है इसे आंखों से देखा या समाचारों से जाना जा सकता है।नारी उपयोगी परिश्रम करके देश की प्रगति में योगदान तो दे ही रही है साथ ही साथ परिवार की आर्थिक समृद्धि भी बढ़ा रही है और इस प्रकार सुयोग्य बनकर रहने पर अपने को गौरवान्वित अनुभव कर रही है, जिससे परिवार को छोटा सा उद्यान बनाने और उसे सुरक्षित पुष्पों से भरपूर बनाने में सफल हो रही है।अगर हम इतिहास की मानें तो हम ये पाते हैं कि,नारी ने पुरुष के सम्मान एवं प्रतिष्ठा के लिए स्वयं की जान दांव पर लगा दी, नारी के इसी पराक्रम के चलते यह कहावत सर्वमान्य बन कर साबित हुई कि,प्रत्येक पुरुष की सफलता के पीछे एक स्त्री का हाथ होता है।मेरा ऐसा मानना है कि,ये उत्सव ही तो है जहाँ वर्ष में कम से कम एक दिन सम्पूर्ण सृष्टि का सृजन करने वाली नारी शक्ति के योगदान की पुरे विश्व में सराहना की जाती है, यह तो सर्वविदित ही है कि, सभ्य समाज के निर्माण में जितना योगदान पुरुषों का होता है उतना ही योगदान स्त्री का भी परन्तु जिस प्रकार का सम्मान पुरुषों को समाज में मिलता है उतना स्त्री को नहीं मिल पाता है, इसका प्रमुख कारण समाज की संकीर्ण मानसिकता।हम इतिहास के पन्ने यदि पलट के देखें तो पाते हैं कि,देवी अहिल्याबाई होलकर, मदर टेरेसा, इला भट्ट, महादेवी वर्मा, राजकुमारी अमृत कौर, अरुणा आसफ अली, सुचेता कृपलानी और कस्तूरबा गांधी आदि जैसी कुछ प्रसिद्ध महिलाओं ने अपने मन-वचन व कर्म से सारे संसार में अपना नाम रोशन किया है। कस्तूरबा गांधी ने महात्मा गांधी का बायां हाथ बनकर उनके कंधे से कंधा मिलाकर देश को आजाद करवाने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई है। 
 इंदिरा गांधी ने अपने दृढ़-संकल्प के बल पर भारत व विश्व राजनीति को प्रभावित किया है।इसी लिए तो उन्हें लौह-महिला कहा जाता है। इंदिरा गांधी ने पिता, पति व एक पुत्र के निधन के बावजूद हौंसला नहीं खोया। दृढ़ चट्टान की तरह वे अपने कर्मक्षेत्र में कार्यरत रहीं। अमेरिका के पूर्व राष्ट्रपति रोनाल्ड रेगन तो उन्हें ‘चतुर महिला’  कहते थे, क्योंकि इंदिराजी राजनीति के साथ-साथ वाक्-चातुर्य में भी माहिर थीं।
 अंत में यहां पर यह कहना समीचीन होगा कि, हमें हर महिला को उचित सम्मान देना चाहिए। अवहेलना, भ्रूण हत्या और नारी की अहमियत न समझने के परिणाम स्वरूप महिलाओं की संख्या, पुरुषों के मुकाबले बहुत कम बची है। इंसान को यह नहीं भूलना चाहिए, कि नारी द्वारा जन्म दिए जाने पर ही वह दुनिया में अस्तित्व बना पाया है और यहां तक पहुंचा है। उसे ठुकराना या अपमान करना सही नहीं है। भारतीय संस्कृति में महिलाओं को देवी, दुर्गा व लक्ष्मी आदि का यथोचित सम्मान दिया गया है अत: उसे उचित सम्मान दिया ही जाना चाहिए।                                                               संग्रह एवं प्रस्तुति–                                                  राजीव थपलियाल                                                                     प्रधानाध्यापक 

 राजकीय प्राथमिक विद्यालय मेरुड़ा                                                 जयहरीखाल पौड़ी गढ़वाल                                                                उत्तराखंड

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