विश्व रेडियो दिवस, अजय तिवाड़ी। रेडियो की यात्रा कभी सूचनाओं और मनोरंजन का प्रमुख साधन था रेडियो। आज दुनिया भर में विश्व रेडियो दिवस मनाया जा रहा है। बीते जमाने में सूचना तथा मनोरंजन और जानकारियां साझा करने , सरकार की योजनाओं को जनमानस तक पंहुचाने के लिए रेडियो एक शसक्त माध्यम था लेकिन तकनीकी के विस्तार ने आज रेडियो को गुजरे जमाने की चीज बना दिया है।

यद्यपि भारत के यशस्वी प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने रेडियो पर मन की बात का प्रसारण करवाकर रेडियो को पुनः प्रासंगिक बनाने के लिए प्रयास किया और कुछ लोग पुनः रेडियो से जुड़े भी लेकिन आज का दौर शोसल मीडिया का दौर है मोबाइल का दौर है।
विश्व रेडियो दिवस “रेडियो की यात्रा” – अजय तिवाड़ी
प्रसारण के क्षेत्र में आज मोबाइल क्रान्ति ने रेडियो तो क्या इडियट बाक्स कहलाने वाले टेलीविजन और प्रिन्ट मीडिया के सामने भी अस्तित्व के लिए चुनौतियां पैदा कर दी हैं।तकनीकी के क्षेत्र में नई नई उपलब्धियों और इंटरनेट के प्रसार के साथ ही सटीक सूचनायें , मनोरंजन और ज्ञान विज्ञान के लिए एक ही प्लेटफार्म कम्प्यूटर या मोबाइल ने पूरे इस तंत्र को ही बहुत पीछे छोड़ दिया है।
भारत में रेडियो
अब बात करें भारत में रेडियो के इतिहास की तो अंग्रेजों के शासन के समय जून 1923 में रेडियो का प्रसारण आरम्भ हुआ था। 23 जुलाई 1927 को एक समझौते के अनुसार, प्राइवेट इण्डियन ब्रॉडकास्टिंग कम्पनी लिमिटेड (IBC) को दो रेडियो स्टेशन संचालित करने के लिए अधिकृत किया गया था: बॉम्बे स्टेशन जो 23 जुलाई 1927 को आरम्भ हुआ था, और कलकत्ता स्टेशन जो 26 अगस्त 1927 को आरम्भ हुआ था। कम्पनी चली गई।
1 मार्च 1930 को परिसमापन में सरकार ने प्रसारण सुविधाओं को संभाला और 1 अप्रैल 1930 को दो वर्ष के लिए प्रायोगिक आधार पर भारतीय स्टेट ब्रॉडकास्टिंग सर्विस (ISBS) की शुरुआत की और मई 1932 में स्थायी रूप से ऑल इण्डिया रेडियो बन गया।
अब बात करें उत्तर भारत में रेडियो किस तरह घर घर मे एक पारिवारिक सदस्य की तरह जीवन का एक हिस्सा बन गया था। आकाशवाणी के दिल्ली, लखनऊ और भोपाल केन्द्र से उच्च प्रसारण क्षमताओं के चलते पूरे उत्तर भारत में रेडियो ने धाक जमा दी थी।
इसके साथ ही ब्रिटिश ब्राॅडकास्टिगं कार्पोरेशन ( बी•बी•सी•) श्रीलंका ब्राडकाॅस्टिंग कार्पोरेशन( सिलांग) और चीन के बीजिंग से हिन्दी भाषाओं में समाचार और मनोरंजक कार्यक्रमों का प्रसारण भारत में सुना जाता था फिर वविधभारती से मनोरंजन के साथ विज्ञापन प्रसारण शुरु हुए विविधभारती से नाटकों की शानदार श्रंखला हवामहल प्रसारित होता था जिसका श्रोता बेसब्री से इंतजार करते थे।
अल सुबह बी•बी•सी• से गजला अमीन आदि प्रसारक सुने जाते थे। विविध भारती से आपकी पसन्द और विनाका संगीत माला जिसमें अमीन सयानी का भाइयो और बहनों के उद्धोष के साथ कार्यक्रम शुरु करना लाजवाब था।
और सुपर हिट गीतों को जनता की पसन्द से एक से लेकर दसवीं पायदान ( सीढ़ियों) पर अमीन सयानी ही बतलाते थे अब बात करें दुर्गम और सीमान्त भौगोलिक क्षेत्र जो कि तब उत्तर प्रदेश प्रान्त का भाग था , यहां आज के दौर की तरह गांव गांव बिजली और सड़क व्यवस्था नही थी।
आज से 30 साल पहले रेडियो ही सूचना और मनोरंजन का एक मात्र साधन था तब आकाशवाणी के लखनऊ, दिल्ली , भोपाल और नजीबावाद से रेडियो पर होने वाले प्रसारण सुने जाते थे आकाशवाणी का दिल्ली केन्द्र जब 86-87 में वेस्ट इण्डीज के भारत दौरे की कमेन्ट्री प्रसारित करता तो एक रेडियो पर सैकड़ों लोग हिंदी और अंग्रेजी में आंखो देखा हाल रेडियो पर पूरी तन्मयता के साथ सुनते थे।
और कमेन्ट्रेटर सुरेश तरैया, मुरली मनोहर, मंजुल सुशील दोषी जसवन्त सिंह आदि का आंखो देखा हाल इस तरह लगता जैसे सब आंखो के आगे घटित हो रहा हो रेडियो ने क्रिकेट को लोकप्रिय बनाया गावस्कर , कपिल देव विश्वनाथ संदीप पाटिल , मैल्कम मार्शल क्लाइव लाॅयड , विव रिचर्डस की पहचान दुनिया भर में रेडियो के चलते हुई।
आकाशवाणी नजीबावाद का ग्राम जगत कार्यक्रम हर शाम 7-30 पर अपने रोचक कार्यक्रमों के साथ होता तथा पहाड़ के लोग इसका बेसब्री से इंतजार करते थे इसके साथ ही हर शुक्रवार को गढ़वाली कुमांऊनी तथा जौनसारी गीतों का कार्यक्रम गिरिगुंजन का भी लोग हर सप्ताह से बेसब्री से इंतजार करते थे।
आकाशवाणी से प्रेम कुमार सदाना , चक्रधर कंडवाल और आखिरी दौर में विनय ध्यानी आदि उद्घोषकों ने श्रोताओं के दिलों मे राज किया फिर वह दौर आया जब ये कार्यक्रम देहरादून से प्रसारित हुये लेकिन उच्च प्रसारण क्षमता का अभाव बेहतर कार्यक्रमों की कमी और इंटरनेट और मोबाइल के हर हाथ में पंहुचने कै चलते रेडियो लोगों से बहुत बहुत दूर हो गया।
आज प्रसारण के क्षेत्र में महज औपचारिकता निभा रहा है।उम्मीद की जानी चाहिए भारत सरकार का सूचना एवं प्रसारण मंत्रालय उच्च क्षमता के प्रसारण केन्द्रों की स्थापना बेहतर कार्यक्रमों के प्रसारण विषय वस्तुओं और तकनीकी के सहयोग से गुजरे जमाने के मनोरंजन के साधन रेडियो के दिन पुनः वापस लाने को कदम उठायेगी।